Thursday, July 23, 2009

मुझे सर्म आती है .

मुझे शर्म आती है अपने आप को बिहारी कहने मे । मै अपनी पहचान छिपाना चाहता हु , हा ये सच है और ख़बरदार किसी ने मुझे नसीहत देने कि कोशिस की कोई मेरी भावनाओ को दबाने का प्रयत्न न करे ।
आती है भाई मुझे अपने आप को बिहारी कहलवाने मे शर्म आती है , मै नजर नही मिला पता, किसी के सामने अपने आप को प्रकट करने मे मुझे लज्जा आती है । जानते है क्यू ........ ?
क्यू कि जिस स्थिति मे मेरा बिहार है मै उसे स्थिति से उबरने मे असमर्थ हु । मेरी हालत उसआदमी कि तरह है जो अपनी पत्नी के साथ कांटिनेंटल से dinner कर के लौट रहा हो और उस कि माँ रास्ते के मन्दिर कि सीढियों पे बैठी जूठे प्रसाद के लिए हाथ फेलारही हो । मै नही चाहता किसी को ये पता चले कि वो मेरी माँ है , मुझे पाल पोस कर बड़ी करने वाली मेरी माँ मन्दिर के सीढियों पर पड़ी उई है , मै नही चाहता किसी को ये बात पता चले ।
कहने को तो हजारो डॉक्टर , इंजिनियर निकलते है बिहार से , पर क्या है कि उनको शर्म नही आती उन्हें टाइम ही नही मिलता, बहुत वस्त लोग है भाई चूल्हे मे जाय माँ ...............
आज कल पिता अपने पुत्र से कहता है कि पढो लिखो और इस गन्दगी से बाहर जाओ ....... बहुत बढ़िया कितने कैरिंग पिता है । अरे बापजी अगर भगत सिंह के बाप ने उशे रोक लिया होता तो झक मर के लेते आज़ादी ।
और ऊपर से अपने भगत को तो देखो जब तक हपते मे लोंडिया के साथ सिनेमा न देखे मूड ही नही बनता ......... झंडू साला

ठीक है कोई जरुरत नही झंडूओं कि , मै अकेला जाऊंगा टूरिस्ट के हसियेत से नही एक बिहारी कि हसियेत से , वह पड़ी हर उष गन्दगी को हटाऊंगा जिससे मझे लज्जा आती है। मुझे बर्दास्त नही मेरी माँ जूठन के लिए कतार में
खड़ी हो ।